क्यों युवाओं को हो रहा है आत्महत्या से प्यार?

हमारी इस खूबसूरत दुनिया में कई ऐसे दुखद पहलू हैं, जिन पर हमें बहुत गंभीरता से काम करने की जरूरत है। इसी में शामिल है आत्महत्या। आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारी दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान दे रहा है। इसी संख्या पर नियंत्रण करने और लोगों के बीच मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य हर साल 10 अक्टूबर को वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ द्वारा वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे सेलिब्रेट किया जाता है। इस डे पर अवेयरनेस को लेकर हर साल अलग टॉपिक डिसाइड किया जाता है। साल 2019 के लिए इसका टॉपिक सूइसाइड प्रिवेंशन रखा गया है। इसी विषय पर हमने मैक्स हॉस्पिटल, पड़पड़गंज, दिल्ली के कंसल्टेंट सायकाइट्रिस्ट राजेश कुमारसे बात की…

मेंटल हेल्थ अवेयरनेस


इस साल वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे को वर्ल्ड सूइसाइड प्रिवेंशन डे के रूप में मनाया जा रहा है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन द्वारा हाल ही जारी आंकड़ों के अनुसार, हर साल करीब 8 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं जबकि आत्महत्या का प्रयास करनेवाले लोगों की संख्या इससे कहीं अधिक होती है। इतनी बड़ी संख्या में लोगों का आत्महत्या करना या आत्महत्या का प्रयास करना हमारी सोसायटी के लिए किसी भी तरह से अच्छा संकेत नहीं है। कोई भी व्यक्ति तुरंत ही आत्महत्या का कदम नहीं उठा लेता। उसके मन में यह विचार काफी दिनों से चल रहा होता है। अगर आस-पास के लोग उसके व्यवहार को जांचकर इस बारे में जान पाएं तो उस व्यक्ति को आत्महत्या से रोका जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि लोगों में मेंटल हेल्थ को लेकर अवेयरनेस जरूर हो।

बढ़ते सूइसाइड्स को रोका जा सकता है


सूइसाइड को पूरी तरह रोका जा सकता है। अगर हम अपनी सोसायटी के लोगों को मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूक बना सकें। क्योंकि जब भी कोई सूइसाइड कमिट कर लेता है या सूइसाइड करने की कोशिश करता है, इस सबका उस व्यक्ति के परिवार और आस-पड़ोस के लोगों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में 15 से 29 साल के लोगों की डेथ का दूसरा बड़ा कारण सूइसाइड है।

इन बातों पर गौर जरूरी


हम जानते हैं कि हमारे यंगस्टर्स सूइसाइड का की तरफ ज्यादा अट्रैक्ट होते हैं। तो परिवार, समाज और स्कूल्स का यह दायित्व बनता है कि बच्चों की मेंटल हेल्थ पर ध्यान दिया जाए। हमारे समाज में सूइसाइड का अटेंप्ट महिलाओं द्वारा अधिक किया जाता है। लेकिन सूइसाइड कमिट करने की दर पुरुषों की अधिक है। WHO ने अपने मेंटल हेल्थ ऐक्शन प्लान के तहत फिलहाल इसे 10 प्रतिशत तक घटाने का प्लान रखा है। लगातार किए जा रहे प्रयासों से इसका रेट डिवेलप कंट्रीज में कम हुआ है और लोअर अर्निंग कंट्रीज में भी कम हुआ है। लेकिन इन दोनों की तुलना की जाए तो डिवेलप कंट्रीज की तुलना में यह रेश्यो लोअर अर्निंग कंट्रीज में काफी कम है।

गांव की अपेक्षा शहरों में अधिक

सूइसाइड केसेज की स्टडी से जुड़ी कई रिपोर्ट्स में यह बात सामने आ चुकी है कि गांव की अपेक्षा शहरों के युवाओं में सूइसाइड कमिट के केस अधिक देखने को मिलते हैं। आमतौर पर इनकी आयु 20 से 40 साल के बीच होती है। इसकी वजहों में सबसे अधिक एक्यूट स्ट्रैस रिलेटेट टु जेंडर डिस्क्रिमेशन, इकॉनमिकल स्टेटस, खुद को प्रूव करने का दबाव या रेप जैसे केस भी शामिल हैं। विकसित देशों और अविकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में सूइसाइड रेट कहीं अधिक देखने के मिलता है। वहीं, गरीब देशों में अमीर देशों की तुलना में 3 गुना ज्यादा लोग सूइसाइड कमिट करते हैं।

क्यों उठाते हैं ऐसा कदम?

अब सवाल यह उठता है कि आखिर युवा वर्ग इतनी बड़ी संख्या में सूइसाइड कमिट क्यों कर रहा है? या यह प्रवृत्ति हमारी सोसायटी में क्यों बढ़ रही है? तो इसके कई कारण हैं। सबसे पहला कारण तो मेंटल इलनेस ही है। इसमें डिप्रेशन, एंग्जाइटी, किसी तरह का एडिक्शन, इमोशनल रीजन, जैसे रिलेशनशिप में दिक्कत या ब्रेकअप ना सहन कर पाना आम कारण हैं। इसके अतिरिक्त किसी बीमारी के चलते क्रॉनिक पेन, कोई क्रॉनिक इलनेस जैसे, कैंसर, डायबिटीज आदि भी शामिल हैं। इनके साथ ही सोशल कॉज में किसी तरह का इकनॉमिक लॉस होना या लंबे संघर्ष के बाद भी जॉब ना लग पाना, परिवार या समाज का खुद को प्रूव करने को लेकर अत्यधिक दबाव होना भी इसके कारणों में देखे गए हैं।

ये हैं अलार्मिंग साइन


हम पहले भी कह चुके हैं कि सूइसाइड प्रिवेंशन के लिए इसके लक्षणों की पहचान जरूरी है। जरूरी है कि जो व्यक्ति इस तरह की मानसिक अवस्था से गुजर रहा है, उसके आस-पास इस बीमारी के अलार्मिंग साइन पहचानने वाले लोग हों। अगर कोई व्यक्ति इस दिशा में बढ़ रहा है तो वह अपने आस-पास के लोगों से लगातार नेगेटिव थॉट्स शेयर करता है। उसकी हर बात में निराशा झलकती है। वहीं, डेथ विश, सूइसाइड आइडियाज और हैलोजिनेशन की वजह से भी कुछ लोग आत्महत्या करते हैं। पास्ट हिस्ट़्री ऑफ द पर्सन, जिसने सूइसाइड अटैम्प किया हो। अगर किसी ने पिछले तीन महीने में आत्महत्या की कोशिश की है तो इस बात के चांस बढ़ जाते हैं कि वह दोबारा इस तरह का कदम उठा सकता है। परिवार में अगर किसी ने पहले सूइसाइड कमिट किया होता है, तब भी उस फैमिली के यंगस्टर्स किसी दबाव या मानसिक समस्या के दौरान इस तरफ आकर्षित हो सकते हैं।

ऐसे में रहें अधिक सतर्क


जब कोई व्यक्ति सूइसाइड कमिट करने की कोशिश करता है और उसको बचा लिया जाता है तो उस दौरान हम उस व्यक्ति की फैमिली हिस्ट्री को खंगालते ही हैं, साथ ही उसके परिवार को भी आगाह करते हैं। क्योंकि आमतौर पर यह चीज देखने को मिलती है कि एक बार सूइसाइड कमिट करने का प्रयास कर चुका व्यक्ति अगले तीन महीने के अंदर इस प्रक्रिया को दोहरा सकता है। ऐसा देखा गया है कि एक बार यह कोशिश करने के बाद व्यक्ति तीन महीने के भीतर दोबारा इस तरह के ऐक्ट को करता है।

कैसे पहचानें लक्षणों को?


जब कोई व्यक्ति दिमागी तौर पर परेशान होता है या उसके दिमाग में सूइसाइड को लेकर प्लानिंग चल रही होती है तो नेगेटिव बातें करने के साथ ही वह खाना कम खाने लगता है। यानी उसकी डायट लगातार घट रही होती है। उसे नींद नहीं आती या वह बहुत कम समय के लिए ही सो पाता है, पहले की तुलना में लोगों से मिलना और बात करना बंद कर देता है या बेहद कम कर देता है, पहले की तरह खुशमिजाज नहीं रहता है। अगर आपको अपने परिवार या आस-पास किसी व्यक्ति के व्यवहार में इस तरह के बदलवा देखने को मिलें तो इन्हें गंभीरता से लें।

रोकथाम के लिए क्या करें?


प्रिवेंशन के तौर पर सबसे पहले आप लेट्स टॉक का फॉर्म्यूला अपनाएं। यानी इससे बात करें, उसकी सुनें, उसे अपने साथ का अहसास कराएं। ताकि वो इमोशनल स्ट्रैस शेयर कर सके। जब कोई व्यक्ति इस तरह की मानसिक अवस्था से गुजर रहा हो और उसके पास कोई उसकी बात सुनने वाला नहीं होता तो वो अपने अंदर चल रही उलझनें शेयर नहीं कर पाता और सब अंदर ही अंदर रह जाने के कारण वह घुटन महसूस करता है और फिर अवसाद का शिकार होता है और इस तरह के खुद को हानि पहुंचाने वाले कदम उठाता है।

कंसल्ट विद सायकाइट्रिस्ट


अगर आपको लगता है कि सिर्फ बात करने से बात नहीं बन पाएगी और परेशान व्यक्ति निराशा की तरफ जा चुका है। ऐसे में बिना वक्त गवाए सायकाइट्रिस्ट से कंसल्ट करें। बताई गई दवाइयां समय पर दें। साथ ही ऐसी चीजें जो सुइसाइट कमिट करने के लिए यूज की जा सकती है, उन्हें दूर रखें। पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार पर नजर रखें और इसे हर समय कंफर्टेबल फील कराएं। आपके लिए जरूरी है कि आप उसे किसी भी चीज के लिए फोर्स ना करें, सिर्फ उसकी बात सुनें और सजेशन दें। प्रेशर क्रिएट ना करें।